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बुधवार, 23 अगस्त 2017

।। दो लाइन शायरी ।।

एक चाहत थी. . तेरे साथ जीने की,
वरना, मोहब्बत तो किसी से भी हो सकती थी।

कोशिश हज़ार की के इसे रोक लूँ मगर,
ठहरी हुई घड़ी में भी .. ठहरा नहीं ये वक्त।

मुझको छोड़ने की वजह . . तो बता देते,
मुझसे नाराज थे या मुझ जैसे हजारों थे।

शायरी भी एक खेल है शतरंज का ,
जिसमे लफ़्ज़ों के मोहरे मात दिया करते हैं एहसासों को।

कागज के बेजान परिंदे भी उड़ते है,
जनाब , बस डोर सही हाथ में होनी चाहिए।

मुझे तलाश है उन रास्तों कि, जहां से कोई गुज़रा न हो ,
सुना है. . वीरानों मे अक्सर , जिंदगी मिल जाती है।

मोहब्बत की शतरंज में वो बड़ा चालाक निकला,
दिल को मोहरा बना कर हमारी जिन्दगी छीन ली।

गलतफहमी की गुंजाईश नहीं सच्ची मोहब्बत में ,
जहाँ किरदार हल्का हो , कहानी डूब ही जाती है।

जहाँ भी ज़िक्र हुआ सुकून का. .
वहीँ तेरी बाहोँ की तलब लग जाती हैं।

बहुत से लोग कहते है मोहब्बत जान ले लेती है ..
मोहब्बत जान नहीं लेती है बिछड़ने पर यादें अंदर से तोड़ जाती है।

बड़ी अजीब है ये मोहब्बत ..
वरना अभी उम्र ही क्या थी शायरी करने की।

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहें हैं,
बहुत दिनों से ख़ुशी को तरस रहें हैं।

तेरा आधे मन से मुझको मिलने आना,
खुदा कसम मुझे पूरा तोड़ देता है।

धड़कनो मे बस्ते है कुछ लोग,
जबान पे नाम लाना जरूरी नही होता।

उसकी याद आयी है सांसो जरा अहिस्ता चलो,
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है।

मेरी रूह गुलाम हो गई है तेरे इश्क़ में शायद,
वरना यूँ छटपटाना मेरी आदत तो ना थी।

शर्म नहीं आती उदासी को जरा भी ,
मुद्दतों से मेरे घर की महेमान बनी हुई है।

मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है,
तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद है।

काश.. बनाने वाले ने थोड़ी - सी होशियारी और दिखाई होती ,
इंसान थोड़े कम और इंसानियत ज्यादा बनाई होती।

रोता वही है जिसने महसूस किया हो सच्चे रिश्ते को,
वरना मतलब के रिश्तें रखने वाले को तो कोई भी नही रूला सकता।

कौन कहता है अलग अलग रहते हैं हम और तुम ,
हमारी यादों के सफ़र में हमसफ़र हो तुम।

कौन कहता है के तन्हाईयाँ अच्छी नहीं होती ,
बड़ा हसीन मौका देती है ये ख़ुद से मिलने का।

वो दुश्मन बनकर, मुझे जीतने निकले थे ,
दोस्ती कर लेते , तो मैं खुद ही हार जाता।

वो सुर्ख होंठ और उनपर जालिम अंगडाईयां,
तू ही बता , ये दिल मरता ना तो क्या करता।

कौन कहता है कि हम झूठ नही बोलते ,
एक बार खैरियत तो पूछ के देखिये।

दर्द की शाम है, आँखों में नमी है ,
हर सांस कह रही है, फिर तेरी कमी है।

सारे साथी काम के, सबका अपना मोल,
जो संकट में साथ दे, वो सबसे अनमोल।

मोहब्बत हमारी भी , बहुत असर रखती है ,
बहुत याद आयेंगे , जरा भूल के तो देखो।

शोर करते रहो तुम . . सुर्ख़ियों में आने का. .
हमारी तो खामोशियाँ भी , एक अखबार हैं।

सीख नहीं पा रहा हूँ मीठे झूठ बोलने का हुनर,
कड़वे सच से हमसे न जाने कितने लोग रूठ गये।

वो पिला कर जाम लबों से अपनी मोहब्बत का ,
अब कहते हैं नशे की आदत अच्छी नहीं होती।

हम ने रोती हुई आँखों को हसाया है सदा ,
इस से बेहतर इबादत तो नहीं होगी हमसे।

इतनी दिलक़श आँखें होने का, ये मतलब तो नही. .
कि, जिसे देखो . . उसे दिवाना कर दो।

जिन्हे सांसो की महक से ईश्क महसूस ना हो ,
वो गुलाब देने भर से हाल - ए - दिल क्या समझेंगे।

मोहब्बत हमारी भी , बहुत असर रखती है ,
बहुत याद आयेंगे , जरा भूल के तो देखो।

जिन्हे सांसो की महक से ईश्क महसूस ना हो ,
वो गुलाब देने भर से हाल - ए - दिल क्या समझेंगे।

नफरत के बाजार में मोहब्बत बेचते है,
कीमत में सिर्फ और सिर्फ दुआ ही लेते है।

हर कदम पर जिन्दगी एक नया मोड लेती है,
कब न जाने किसके साथ एक नया रिशता जोड देती है।

अजीब सा हाल है कुछ इन दिनों तबियत का,
ख़ुशी ख़ुशी नही लगती और ग़म बुरा नही लगता।

क्या अब भी तुमको चरागों की जरुरत है ,
हम आ गए है अपनी आँखों में वफ़ा की रौशनी ले कर।

कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा ,
आँखों को देखा पर दिल मे उतर कर नहीं देखा ,
पत्थर समझते है मेरे चाहने वाले मुझे ,
हम तो मोम है किसी ने छूकर नहीं देखा।

दीवाना उस ने कर दिया एक बार देख कर,
हम कर सके न कुछ भी लगातार देख कर।

वो जिसकी याद मे हमने खर्च दी जिन्दगी अपनी,
वो शख्श आज मुझको गैर कह के चला गया।

जो उनकी आँखों से बयां होते हैं,
वो लफ्ज़ शायरी में कहाँ होते हैं।

खुशनसीब कुछ ऐसे हो जाये ,
तुम हो हम हो और इश्क हो जाये।

उदासियों की वजह तो बहुत है ज़िन्दगी में,
पर खुश रहने का मज़ा आपके ही साथ है।

ए मेरी कलम इतना सा अहसान कर दे
कह ना पाई जो जुबान वो बयान कर दे।

अब मौत से कहो की हमसे नाराज़गी ख़त्म कर ले,
वो बहुत बदल गए है, जिसके लिए हम जिया करते थे ।

जब लगा था खँजर तो इतना दर्द ना हुआ ,
जख्म का एहसास तो तब हुआ जब चलाने वाले पे नजर पड़ी।

परवाह नहीं अगर ये जमाना खफा रहे . .
बस इतनी सी दुआ है, दोस्त मेहरबां रहे।

गिरते हुए आँसुओं को कौन देखता है
झूठी मुस्कान के दीवाने हैं सब यहाँ।

बहुत सा पानी छुपाया है मैंने अपनी पलकों में​,
जिंदगी लम्बी बहुत है, क्या पता कब प्यास लग जाए​।

जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है,
जो साज़ पर बीती है वो दर्द किस दिल को पता।

कौन तोलेगा हीरों में अब तुम्हारे आंसू सेराज़,
वो जो एक दर्द का ताजिर था दुकां छोड़ गया।

तासीर किसी भी दर्द की मीठी नहीं होती ग़ालिब,
वजह यही है की आँसू भी नमकीन होते है।

मेरे टूटने का ज़िम्मेदार मेरा जौहरी ही है,
उसी की ये ज़िद थी की अभी और तराशा जाए।

ये सुर्ख लब , ये रुखसार, और ये मदहोश नज़रें
इतने कम फासलों पर तो मयखाने भी नहीं होते।

अपने रब के फैसले पर, भला शक केसे करूँ,
सजा दे रहा है गर वो, कुछ तो गुनाह रहा होगा मेरा।

शान से जीने काशौंक है, वो तो हम जियेंगे
बस तूँ अपने आप को सम्भाल हम तो यूहीँ चमकते रहेंगे।

रिश्तो की जमावट आज कुछ इस तरह हो रही है,
बहार से अच्छी सजावट और अन्दर से स्वार्थ की मिलावट हो रही है!!

दिल से बड़ी कोई क़ब्र नहीं है,
रोज़ कोई ना कोई एहसास दफ़न होता है॥

तेरी आंखों के आईने में जब - जब देखी अपनी छाया ,
खुद को पूरी क़ायनात से भी ज्यादा खूबसूरत पाया।

मुश्किलों से कह दो की उलझे ना हम से,
हमे हर हालात मैं जीने का हूनर आता है।

हम से पूछो शायरी मागती है कितना लहू,
लोग समझते है धंधा बङे आराम का हैं!!

मेरी हर शायरी मेरे दर्द को करेगी बंया ‘ ए गम ’
तुम्हारी आँख ना भर जाएँ , कहीं पढ़ते पढ़ते. .!!

कुर्सी है, तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है,
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते।

मेरे न हो सको, तो कुछ ऐसा कर दो ,
मैं जैसी थी. . मुझे फिर से वैसा कर दो।

वो आज मुझ से कोई बात कहने वाली है ,
मैं डर रहा हूँ के ये बात आख़िरी ही न हो।

लोग वाकिफ हे मेरी आदतो से,
रूतबा कम ही सही पर लाजवाब रखता हूँ।

लम्हे फुर्सत के आएं तो, रंजिशें भुला देना दोस्तों ,
किसी को नहीं खबर कि सांसों की मोहलत कहाँ तक है।

सुरमे की तरह पीसा है हमें हालातों ने ,
तब जा के चढ़े है लोगों की निगाहों में।

परवाह नहीं चाहे जमाना कितना भी खिलाफ हो ,
चलूँगा उसी राह पर जो सीधी और साफ हो।

मेरी आवाज को महफूज कर लो .. मेरे दोस्त
मेरे बाद बहुत सन्नाटा होगा . . तुम्हारी महफ़िल में।

कभी शाम होने के बाद.. मेरे दिल में आकर देखना,
खयालों की महफिल सजी होती है और जिक्र सिर्फ तुम्हारा होता है।

सवर रही है अब वो किसी और के लिए..
पर मैं बिखर रहा हूँ आज भी उसी के लिए।

शतरंज मे वज़ीर और ज़िंदगी मे ज़मीर ,
अगर मर जाए तो समझिए खेल ख़त्म।

मोहब्बत और मुकद्दर में बरसों से जिद का रिश्ता है ,
मोहब्बत जब भी होती है तो मुकद्दर रूठ ही जाता है।

आसानी से जो कोई मिल जाए तो वो किस्मत की बात है,
सूली पर चढ़कर भी जो ना मिले उसे मोहब्बत कहते है!!

हम तो पागल है जो शायरी में ही दिल की बात कह देते है..
लोग तो गीता पे हाथ रखके भी सच नहीं बोलते।

तेरा नाम लूँ जुबां से तेरे आगे ये सिर झुका दूँ ,
मेरा इश्क़ कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ।

हश्र - ऐ- मोहब्बत और अंजाम अब ख़ुदा जाने
तुझ से मिलकर मिट जाना ही मेरा वजूद था।

यूँ ना बर्बाद कर मुझे , अब तो बाज़ आ दिल दुखाने से..
मै तो सिर्फ इन्सान हूँ, पत्थर भी टूट जाता है , इतना आजमाने से।

कभी तुम पूछ लेना, कभी हम भी ज़िक्र कर लेगें. .
छुपाकर दिल के दर्द को, एक दूसरे की फ़िक्र कर लेंगे।

ये उड़ती ज़ुल्फें और ये बिखरी मुस्कान,
एक अदा से संभलूँ तो दूसरी होश उड़ा देती है।

सब मुझे ही कहते है की भूल जाओ उसे,
कोई उसे क्यूँ नहीं कहेता की वो मेरी हो जाए।

वफ़ा करनी भी सीखो इश्क़ की नगरी में ए दोस्त. .
फ़क़त यूँ दिल लगाने से दिलों में घर नही बनते .. !!

गुफ्तगू उनसे होती यह किस्मत कहाँ ..
ये भी उनका करम है कि वो नज़र तो आये।

इक झलक देख लें तुझको तो चले जाएंगे ..
कौन आया है यहां उम्र बिताने के लिए।

निकल गया तलाश में उसकी मैं पागलों की तरह..
जैसे मुझे अब इंतज़ार नहीं # सनम चाहिये।।

दुआ करो की वो सिर्फ हमारे ही रहे ,
क्यूंकि हम भी किसी और के होना नहीं चाहते।

हवस ने पक्के मकान, बना लिये हैं जिस्मों में. .
और सच्ची मुहब्बत किराये की झोपड़ी में , बीमार पड़ी है आज भी।

सोमवार, 21 अगस्त 2017

क्या खुब लिखा है गुलजार जी ने..!!👌

🌹💞🌹💞🌹💞🌹💞
पानी से तस्वीर
            कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर
            कहा बनती है,
किसी भी रिश्ते को
            सच्चे दिल से निभाओ,
ये जिंदगी फिर
            वापस कहा मिलती है
कौन किस से
            चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने
           हालातों से मजबूर होता है,
हम तो बस
            इतना जानते हैं...
हर रिश्ता "मोती" और
            हर दोस्त "कोहिनूर" होता  है
🌹💞 🌺🌻🌼🌷🌸💮💞🌹