तुम पास आते हो…
तो मचल जाती है तमन्नाएं इस तरह…
चाँद के पास आने से जैसे ज्वार आता है सागर के पानी में…
और जब उतरता है ये उद्वेलन का एहसास…
तो छोड़ जाता है पीछे एक अजब सा आलम…
जो आज था जो अब नहीं है…
जो कल फिर होगा और फिर नहीं होगा।
ऐसे हैं हम और तुम
जैसे चाँद और सागर।