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शनिवार, 9 सितंबर 2017

ग़ज़ल :- खुद को इतना भी मत बचाया कर

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो भीग जाया कर।

चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से जगमगाया कर।

दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से मत बहाया कर।

काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में मुस्कुराया कर।

धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे किसी बहाने आया कर।

कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम हाथ तो मिलाया कर !

मेरे मोहब्बत की दास्ताँ

मेरे मोहब्बत की दास्ताँ किसकी को शायद कहानी लगे
किसी को शायद शायरी लगे, पर हक़ीक़त ये है की ये
मेरी दास्ताँ है-
दिल से-
थी एक पागल लड़की जो मुझसे प्यार करती थी,
खफा थी सारी दुनिया से पर मुझ पर ऐतबार
करती थी।
ज़रूरत ही नहीं सारे जहाँ की मोहब्बत की मुझे,
अकेली वही मुझसे इतना प्यार करती थी।
जब रूठूं तो रोने लग जाती थी,
जब प्यार से बोलूं तो हंसने लग जाती थी।
उम्मीद नहीं रखती थी मुझसे कुछ पाने की,
बिना ख्वाहिश के मोहब्बत लुटाती जाती थी।।
कागज पर ज़िंदा हो जाते थे अल्फाज़,
जब वो मेरी कलम का श्रंगार बनती है।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
उसकी लड़ाई में भी प्यार झलकता था,
उसकी जिद्द में भी अपनापन झलकता था।
प्यार से जब वो मुझे कुछ सुनाती थी,
तब दिल को अंजना सा सकूँ मिलता जाता था।
वो हसीना तब और भी यादगार बनती थी,
गले लगाकर जब वो ख़ुशी से मचलती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।
वो सजना संवारना नहीं जानती थी,
अपनी ख़ुशी को जाहिर करना नहीं जानती थी।
मैं जो भी कह दूँ सच ही होगा,
मैं गलत हूँ इस बात को वो नहीं मानती थी।
वो दिल कि गहराई में और उतरती थी,
जब मुझसे लिपटकर मेरा फैसला स्वीकार करती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।
उसकी हंसी से दिल कि कलियाँ खिल जाती थी,
आँखों के इशारें से खोई राहें मिल जाती थी।
दिल से दिल तक का सफ़र तय हो जाता था,
जब कभी नज़र से नज़र मिल जाती थी।
ज़िंदगी कि तस्वीर बेरंग नज़र आती थी,
जब वो पागल दूसरी गली से गुजरती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
किसी और से बतियाने पे नाराज हो जाती थी,
मैं सिर्फ उसका हूँ ये हक़ जताती थी।
मुझे मेरे ऐब गिनाती रहेगी हमेशा,
अपनी सखियों को मेरी तारीफें सुनती थी।
उसका साथ और भी प्यारा लगने लगता था जब वो,
तुम बहुत प्यारे हो कहकर मुझे बाँहों में जकड़ती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
कुछ लिखने कि सोचो तो वही याद आती है,
किसी से बतियाना चाहूं तो वही याद आती है।
सोने से पहले भी और उठने पे सबसे पहले,
मुझे उसी पगली लड़की कि याद आती है।
मेरे सपनों कि अँधेरी गलियों से,
वो पागल हंसती हुई गुजरती है।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।

ये दिल किसी को पाना चाहता है।

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ये दिल किसी को पाना चाहता है,
और उसे अपना बनाना चाहता है।

खुद तो चाहता है ख़ुशी से धड़कना,
उसका दिल भी धड़काना चाहता है।

जो हँसी खो गई थी बरसों पहले कहीं,
फिर उसे लबों पर सजाना चाहता है।

तैयार है प्यार में साथ चलने के लिए,
उसके हर गम को अपनाना चाहता है।

मोहब्बत तो हो ही गई है अब तो.. पर,
अब उसी से ही ये छिपाना चाहता है।

ये दिल अब किसी को पाना चाहता है,
और उसे सिर्फ अपना बनाना चाहता

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