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शनिवार, 30 सितंबर 2017

कुमार विश्वास जी की ✍ कलम से

हम दिलों जान से जिसे चाहें वो ही रूठता क्यूँ हैं।

हम दिलों जान से जिसे चाहें वो ही रूठता क्यूँ है,
ये दिल जो कि सबसे कीमती है वही टूटता क्यूँ है...

इस दिल को भी पता है इन मसलों के हल नही है,
फिर भी यही सवाल ये मुझसे सदा पूछता क्यूँ है...

यँहा साथी सभी सफ़र के और मंज़िले भी अलग हैं,
फिर भी ये किसी खास के साथ को ढूँढता क्यूँ है..

इसे पता है वो मौन है इससे गुफ्तगूँ भी नही करता,
फिर भी ज़हन में एक उसी का संवाद गूँजता क्यूँ है...

दिल को थाह नही इस प्रेम के सागर की गहराई,
तैरना भी ना जाने फिर भी ये इसमें कूदता क्यूँ है...

ये जानता है इसकी तकलीफ का सबब है वो चेहरा,
फिर भी उसकी ही तस्वीर को छुप के चूमता क्यूँ है ?