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मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

📕 मुझें क़िताब📖 बनाया होता।📕

काश बनाने वाले ने मुझें क़िताब बनाया होता…
वो पढ़ते पढ़ते सो जाती, मुझें सीने से लगाया होता…!!

मैं उसके ग़म में रोता और रोता ही जाता…
उसने चुपके से मुझे सीने से लगाया होता…!!

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ठाकुर सचिन चौहान अग्निवंशी

उसको दास्तान सुना के थक सा गया…
काश उसने भी मुझें हाल-ए-दिल सुनाया होता…!!

मैं उस का नाम लेता और सुबह-शाम लेता…
है अफ़सोस उसने मुझे एक बार तो बुलाया होता…!!

मैं उस की खातिर तड़फता रहा शाम-ओ-शहर…
आराम ना होता गर उस ने एक आँसू ही बहाया होता…!!

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

💌 Thanks Letter 💌

💌_______THANKS LETTER_______💌
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My Dear..!! 🌹
Thank You Very Much For Remembering
My Birthdate And Giving Me A Gift..!!
God Will Take You To The Summit Of Progress.
I Am Greatly Touched From Your
Wonderful Wishes And Remarkable Gift.
Thanks Again With Love..!!

मेरी जन्मतिथि याद रखने और मुझे गिफ्ट देने के लिए बहुत–बहुत धन्यवाद..!!
भगवान तुम्हें उन्नति के शिखर तक ले जाए।
तुम्हारे द्वारा दिए गए गिफ्ट और शुभकानाएं मुझे बहुत अच्छे लगे..!!
एक बार फ़िर प्यार भरा धन्यवाद..!!                                              
                                                 【❤ 】
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शनिवार, 30 सितंबर 2017

कुमार विश्वास जी की ✍ कलम से

हम दिलों जान से जिसे चाहें वो ही रूठता क्यूँ हैं।

हम दिलों जान से जिसे चाहें वो ही रूठता क्यूँ है,
ये दिल जो कि सबसे कीमती है वही टूटता क्यूँ है...

इस दिल को भी पता है इन मसलों के हल नही है,
फिर भी यही सवाल ये मुझसे सदा पूछता क्यूँ है...

यँहा साथी सभी सफ़र के और मंज़िले भी अलग हैं,
फिर भी ये किसी खास के साथ को ढूँढता क्यूँ है..

इसे पता है वो मौन है इससे गुफ्तगूँ भी नही करता,
फिर भी ज़हन में एक उसी का संवाद गूँजता क्यूँ है...

दिल को थाह नही इस प्रेम के सागर की गहराई,
तैरना भी ना जाने फिर भी ये इसमें कूदता क्यूँ है...

ये जानता है इसकी तकलीफ का सबब है वो चेहरा,
फिर भी उसकी ही तस्वीर को छुप के चूमता क्यूँ है ?

शनिवार, 9 सितंबर 2017

ग़ज़ल :- खुद को इतना भी मत बचाया कर

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो भीग जाया कर।

चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से जगमगाया कर।

दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से मत बहाया कर।

काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में मुस्कुराया कर।

धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे किसी बहाने आया कर।

कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम हाथ तो मिलाया कर !

मेरे मोहब्बत की दास्ताँ

मेरे मोहब्बत की दास्ताँ किसकी को शायद कहानी लगे
किसी को शायद शायरी लगे, पर हक़ीक़त ये है की ये
मेरी दास्ताँ है-
दिल से-
थी एक पागल लड़की जो मुझसे प्यार करती थी,
खफा थी सारी दुनिया से पर मुझ पर ऐतबार
करती थी।
ज़रूरत ही नहीं सारे जहाँ की मोहब्बत की मुझे,
अकेली वही मुझसे इतना प्यार करती थी।
जब रूठूं तो रोने लग जाती थी,
जब प्यार से बोलूं तो हंसने लग जाती थी।
उम्मीद नहीं रखती थी मुझसे कुछ पाने की,
बिना ख्वाहिश के मोहब्बत लुटाती जाती थी।।
कागज पर ज़िंदा हो जाते थे अल्फाज़,
जब वो मेरी कलम का श्रंगार बनती है।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
उसकी लड़ाई में भी प्यार झलकता था,
उसकी जिद्द में भी अपनापन झलकता था।
प्यार से जब वो मुझे कुछ सुनाती थी,
तब दिल को अंजना सा सकूँ मिलता जाता था।
वो हसीना तब और भी यादगार बनती थी,
गले लगाकर जब वो ख़ुशी से मचलती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।
वो सजना संवारना नहीं जानती थी,
अपनी ख़ुशी को जाहिर करना नहीं जानती थी।
मैं जो भी कह दूँ सच ही होगा,
मैं गलत हूँ इस बात को वो नहीं मानती थी।
वो दिल कि गहराई में और उतरती थी,
जब मुझसे लिपटकर मेरा फैसला स्वीकार करती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।
उसकी हंसी से दिल कि कलियाँ खिल जाती थी,
आँखों के इशारें से खोई राहें मिल जाती थी।
दिल से दिल तक का सफ़र तय हो जाता था,
जब कभी नज़र से नज़र मिल जाती थी।
ज़िंदगी कि तस्वीर बेरंग नज़र आती थी,
जब वो पागल दूसरी गली से गुजरती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
किसी और से बतियाने पे नाराज हो जाती थी,
मैं सिर्फ उसका हूँ ये हक़ जताती थी।
मुझे मेरे ऐब गिनाती रहेगी हमेशा,
अपनी सखियों को मेरी तारीफें सुनती थी।
उसका साथ और भी प्यारा लगने लगता था जब वो,
तुम बहुत प्यारे हो कहकर मुझे बाँहों में जकड़ती थी।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।
कुछ लिखने कि सोचो तो वही याद आती है,
किसी से बतियाना चाहूं तो वही याद आती है।
सोने से पहले भी और उठने पे सबसे पहले,
मुझे उसी पगली लड़की कि याद आती है।
मेरे सपनों कि अँधेरी गलियों से,
वो पागल हंसती हुई गुजरती है।
एक पागल थी जो मुझसे प्यार करती थी।।

ये दिल किसी को पाना चाहता है।

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ये दिल किसी को पाना चाहता है,
और उसे अपना बनाना चाहता है।

खुद तो चाहता है ख़ुशी से धड़कना,
उसका दिल भी धड़काना चाहता है।

जो हँसी खो गई थी बरसों पहले कहीं,
फिर उसे लबों पर सजाना चाहता है।

तैयार है प्यार में साथ चलने के लिए,
उसके हर गम को अपनाना चाहता है।

मोहब्बत तो हो ही गई है अब तो.. पर,
अब उसी से ही ये छिपाना चाहता है।

ये दिल अब किसी को पाना चाहता है,
और उसे सिर्फ अपना बनाना चाहता

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